Mahatma Jyotiba Phule Jayanti 2023: महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर जानें उनके जीवन से जुड़े विशेष तथ्य
- By Sheena --
- Tuesday, 11 Apr, 2023
Know the special facts related to the life of the great social reformer Mahatma Jyotiba Phule on his
Mahatma Jyotiba Phule Jayanti 2023 : हर साल 11 अप्रैल को महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती (Mahatma Jyotiba Phule Jayanti) मनाई जाती है। ज्योतिबा फुले (Mahatma Jyotiba Phule) 19वीं सदी के एक महान समाज सुधारक, समाजसेवी, लेखक और क्रांतिकारी कार्यकर्ता थे। 11 अप्रैल 1827 को पुणे में गोविंदराव और चिमनाबाई के घर उनका जन्म हुआ था। ज्योतिराव का परिवार पेशवाओं के लिए फूलवाला के तौर पर काम करता था, इसलिए उन्हें मराठी में फुले कहा जाता था। उनका विवाह सन 1840 में सावित्रीबाई (Savitribai Phule) से हुआ था। महात्मा ज्योतिराव फुले ने समाज में फैली महिला विरोधी कुरीतियों, दलितों से होने वाले भेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने, बाल विवाह रोकने, विधवा विवाह का समर्थन करने और दलिता के उत्थान में लगा दिया। आइए जानते है उनके जीवन बारे में।
ज्योतिबा फुले का जीवन
ज्योतिबा एक वर्ष के ही हुए थे जब उनकी मां का निधन हो गया था। उनका पालन-पोषण एक बायी की देखरेख में हुआ उनकी शुरुआती शिक्षा मराठी में हुई। परिस्थितियों के चलते पढ़ाई में गैप आ गया। इसके बाद 21 की उम्र में उन्होंने इंग्लिश मीडियम से सातवीं की पढ़ाई पूरी की। ज्योतिबा फुले की शादी 1840 में सावित्री बाई से हुई थी।1848 में ज्योतिबा फुले अपने एक ब्राह्मण दोस्त की शादी में गए थे, जहां कुछ लोगों ने उनकी जाति को लेकर उनका अपमान किया। इस बर्ताव को देखते हुए ज्योतिबा फुले ने सामाज से असमानता को उखाड़ फेंकने के लिए कसम खा ली थी। महात्मा फुले का पूरा जीवन ही समाजिक कार्यों में बीता। छुआछूत और भेदभाव पर प्रहार करने के साथ ही उन्होंने किसानों और मजदूरों के अधिकार के लिए भी काम किए।
लड़कियों के लिए खोला पहला स्कूल
ज्योतिबा फुले का मानना था कि समाज और देश तभी आगे बढ़ सकता है जब महिलाएं भी शिक्षित हों। जब देश में बच्चियों और महिलाओं की शिक्षा के लिए किसी विद्यालय की व्यवस्था नहीं थी, तब 1848 में उन्होंने महाराष्ट्र के पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोल दिया। विद्यालय तो खुल गया लेकिन समस्या यह थी कि उसमें पढ़ाने के लिए कोई शिक्षिका उपलब्ध नहीं थी। फुले ने तब अपनी पत्नी सावित्री बाई को स्वयं पढ़ाया और उन्हें शिक्षक बनाया। इसके बाद सावित्री बाई लड़कियों के लिए शुरू किए गए स्कूल में पढ़ाने लगीं। समाज के कुछ लोगों ने उनके इस काम में बाधा भी डाली। उनके परिवार पर दबाव डाला गया। नतीजा यह हुआ कि ज्योतिबा फुले को परिवार छोड़ना पड़ा। इससे लड़कियों के लिए शुरू किए गए पढ़ाई-लिखाई के काम में कुछ समय के लिए व्यवधान आया लेकिन जल्द ही फुले दंपति ने सभी बाधाओं को पार करते हुए लड़कियों के तीन स्कूल और खोल दिए।
महात्मा की उपाधि
दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी। ज्योतिबा फुले के हर काम में उनकी पत्नी पूरा सहयोग करती थीं, इसलिए वह भी एक समाजसेवी कहलाईं। महिलाओं की शिक्षा के लिए किए गए उनके कार्यों को देखते हुए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने 1883 में ज्योतिबा फुले को सम्मानित भी किया था। महात्मा फुले के विचार समाज के एक बड़े वर्ग को प्रेरित और आंदोलित करते आए हैं। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। वे लोकमान्य के प्रशंसकों में थे।